Sunday, January 17, 2010

भाइयों ने नहीं दिया, तो पत्नी ने दिया मुखाग्नि


लेखक: चुन्नीलाल

लखनऊ 26 दिसम्बर 2009 दिन शुक्रवर को ग्राम मुर्दापुर, पोस्ट-शाहपुरभभरौली, थाना-काकोरी, जिला- लखनऊ में यह नजारा देखने को मिला, जहाँ पर भाइयों ने अपने ही भाई को मुखाग्नि देने से इंकार कर दिया. फिर मजबूरन पत्नी को अपनी नवजात पुत्र को अपनी गोद में लेकर मुखाग्नि देना पड़ा. यह वाकया थाना काकोरी के ग्राम मुर्दापुर, जिला लखनऊ का है जहाँ पर बेचालाल अपनी पत्नी श्रीमती पच्चो और एक बेटे उम्र 3 वर्ष थी रहा करते थे. बीते 25 दिसम्बर 2009 की रात में बेचालाल का देहांत हो गया. वह काफी दिनों से कैंसर पीड़ित थे. अपनी जमीन बेचकर किसी प्रकार से अपना इलाज कर रहे थे. उनके फेफड़ों में मवाद बन गया था जिसे ठीक कराना उनके बस के बाहर था. किसी प्रकार से दवाई चलती रही और वह दो महीने जिन्दा रहे. इसी दौरान जब उन्हें पैसे की कमी महसूस दी तो उन्होंने अपनी जमीन बेंच दी. जमीन इलाज के लिए बेंची थी लेकिन भाइयों ने उनसे कहा की आप ने जमीन ज्यादा की बेंची है. अगर हमें उसमें से कुछ हिस्सा दें तो मैं आप की देखभाल करूँगा अन्यथा नहीं. यह बात बेचालाल और उनकी पत्नी पच्चो को नागवार गुजरी. उन्होंने हिस्सा देने से मना कर दिया और कहा कि इलाज के लिए जमीन बेचीं है. इसमें से पहले मैं अपना इलाज करा लूगा. उसके बाद जो बचेगा उसे देखा जायेगा. इसी दौरान बेचालाल ने कुछ पैसे लगाकर अपना घर पक्का बना लिया. यह बात भाइयों को नागवार गुजरी और उन्होंने कहा कि जब आप मरेंगे तो मैं तुम्हे मुखाग्नि तक नहीं दूंगा. ठीक वैसा ही हुआ कि जब उनकी मृत्यु 25 दिसम्बर की रात हुयी और अंतिम संस्कार 26 दिसम्बर 2009 को होने के लिए हुआ तो भाइयों ने मना कर दिया।



बल्कि सभी रिश्तेदारों ने भी उनके भाइयों को समझाया. फिर भी वह नहीं डिगे. अंत में गावंवालों के कहने पर पत्नी पच्चो ने अपने 3 वर्षीय बच्चे को लेकर अपने पति को मुखाग्नि दी. यह दर्द नाक घटना देख कर मैं दंग रह गया कि पैसे के खातिर भी खून के रिश्ते बदल सकते हैं।

Tuesday, December 15, 2009

ऐ मेरे प्यारे वतन



*Geet Ganga के सौजन्य से साभार

Monday, December 7, 2009

चन्दन है इस देस की माटी



*Geet Ganga के सौजन्य से साभार

प्रेरक गीत

1)एक एक पग बढ़ते जायें
2)भारत को स्वर्ग बना दो
3)साधना का पथ कठिन है
4)रास्ट्र भक्ति ले ह्रदय में






*Geet Ganga के सौजन्य से साभार

Saturday, December 5, 2009

गरीबों से लेकर पत्थर तक दे रहे आशा परिवार का परिचय


गरीबों से लेकर पत्थर तक दे रहे आशा परिवार का परिचय



लेखक: चुन्नीलाल

ऐसी लगन, ऐसा जुडाव वह भी बिना किसी लालच के. क्या जरुरत थी कि अपना समय इसमें नष्ट करते. इससे न तो उन्हें मजदूरी मिलती न ही कोई भत्ता. अपनी लड़ाई को तो वो खुद लड़ेगें तभी उन्हें अपना हक़ मिलेगा. पर शायद हम लोगों की समझ से परे और गरीबों के दिलों की आवाज से काफी पास है. वो लोग जिन्हें चाहे जहाँ चाहें बिठा सकते हैं. लेकिन आज तक मैंने यह सुना था कि किसी भी संगठन या पार्टी के कार्यकर्ता बनना है तो उसके लिए मेम्बरशिप चार्ज देना पड़ता है वह भी मनुष्यों के लिए. पर यहाँ तो इसका उल्टा है पता ही नहीं चलता है कि इसका मुखिया कौन है. इसमें कौन और कैसे लोग इसके कार्यकर्ता बन सकते हैं. आदमी ही नहीं वह भी पत्थर भी इसके गवाह हैं. सबके सब मालिक हैं और सब कार्यकर्ता. वह भी बिना किसी चार्ज के बल्कि खुद अपने अधिकारों की लड़ाई लड़कर. वह संगठन है आशा परिवार।


बात उन दिनों की है जब मैं कुछ व्यक्तिगत काम के लिए जिला चंदौली गया था. अख़बारों, टी।वी. चैनलों, अधिकारियों और तमाम चर्चाओं से सुन रखा था कि चंदौली जिले का कुछ भाग नक्सल प्रभावित है. जहाँ पर जाना खतरे से ख़ाली नहीं है. इस जिले में ९ ब्लाक हैं. जिसमें नौगढ ब्लाक खासतौर से चर्चा का विषय बना है. नक्सालियों का भय मेरे मन में भी बना था। अधिकारी लोग भी इसकी चर्चा खूब करते थे। लोगों से कुछ ऐसा सुन रखा था। जिससे मेरी रुंह काँप जाती। पर मुझे क्या? मुझे तो वहां जाना नहीं है। मैं तो लखनऊ में रहूँगा। कुछ काम है तो उसे निपटा लूँगा। यही सोंचते-२ मेरा एक महीना बीत गया. जिले की लगभग ब्लाक में गया पर नौगढ़ और चकिया ब्लाक में नहीं गया. सोंच भी रखा था कि मुझे वहां नहीं जाना है. मैंने सुन रखा था कि चंदौली जिले में आशा परिवार के वरिष्ठ, कर्मठ, संघर्षशील, ईमानदार कार्यकर्ता श्री जयशंकर पाण्डेय जी काम करते हैं. उन्होंने सामाजिक चेतना को ऐसा जगाया है कि लोगों का एक बड़ा जत्था इनके साथ संघर्ष करने को हमेशा तैयार रहता है. पहले तो मुझे विश्वास नहीं हुआ. खैर एक दिन ऐसा आ ही गया कि इनसे मुलाकात हो गई. पता लगा था कि डी.एम. ने एक मीटिंग विशेश्वरपुर ब्लाक-नौगढ़ में रखी है. जहाँ सुप्रीम कोर्ट के आयुक्तों की सलाहकार श्रीमती अरुंधती धुरु जी भी आ रही है। मुझे उनसे मिलने का मौका मिला. मैं काफी खुश था.


दिनांक १६ नवम्बर २००९ को मै गाड़ी में सवार होकर नौगढ़ ब्लाक के उसी एरिया से गुजरा जिसका बड़ा खौफ था और देखने की इच्छा . जहाँ का नाम सुन रखा था. बड़े-२ पहाड़ों, काफी दूर तक फैले जंगल का नजर देखकर दिल काँप गया. तमाम विचार मेरे दिमाग में आने लगे . खैर ४-५ लोग गाड़ी में बैठे थे जिससे इतना डर नहीं लगा कि ह्रदय घात हो जाए. मन में बहुत से प्रश्न लिए और गाड़ी से ही बाहर का माहौल, डरावना जंगल देखते हुए जा रहा था कि अचानक मेरी आँखों के सामने पत्थरों पर लिखा जैसा कुछ चमका. मैंने अपनी निगाह ऊँचे-२ पहाड़ों को चीरती हुयी सडक, के किनारे ऊंचाई पर पड़े पत्थरों पर डाली. मुझे अचानक झटका लगा कि क्या ऐसा हो सकता है. ये कैसे हुआ. यह नाम किसने लिखा. यह नाम किसका है. गावं पहुंचते ही लोगों से मिला तो पता चला कि यहाँ के लोगों ने इन पत्थरों को भी आशा परिवार का कार्यकर्ता बनाया है. वह भी किसी के कहने से नहीं बल्कि आशा परिवार संगठन द्वारा गरीबों का साथ देने से, गरीबों ने ऐसा किया. क्योंकि इन लोगों की जिंदगी इन्ही पत्थरों के बीच गुजरती है.
पर हाँ, यह सच है कि वहां के ऊँचें-२ पहाड़ों के पत्थर भी आशा परिवार का नाम अपने ऊपर लिखवाकर यही सबूत दे रहे है कि मुझे भी मौका मिला आशा परिवार का कार्यकर्ता बनने का. इन सबका श्रेय जाता है मग्सय-सेसे पुरुस्कार से सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. संदीप पाण्डेय जी के साथ काम करने वाले श्री जयशंकर पाण्डेय जी को. जिनका मुख्य काम गरीब, आदिवासी, दलित, और समाज से वंचित लोगों को उनका हक़ दिलाना व उनके अधिकारों के प्रति उन्हें जागरूक करना. मंरेगा मजदूरी से लेकर सार्वजनिक वितरण प्रणाली, मध्यान्ह भोजन, शिक्षा का अधिकार, स्वास्थ्य का अधिकार, सूचना का अधिकार, भोजन का अधिकार, काम का अधिकार, तक का हक़ लोगों को दिलाना है. आज गरीब से गरीब व्यक्ति अपने ग्राम पंचायत प्रधान, सेक्रेटरी, बी.डी.ओ., कोटेदार, अध्यापक, डी.एम. को भले ही नहीं जानता हो, पर जयशंकर पाण्डेय और आशा परिवार को जरुर जानता है. जिनसे उन्हें जीने के स्वाभिमान पूर्वक जीने का अधिकार मिला. इन्होनें गरीबों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक ही नहीं किया बल्कि उनका हक़ दिलाया. चाहे वह नरेगा के तहत हड़प की गयी मजदूरों की मजदूरी हो, या फिर कोटेदारों द्वारा हड़प किया गया गरीबों का राशन हो, प्रधानों द्वारा ग्राम विकास के हड़प किये गए पैसे की जनता जाँच हो. वह भी पूरे चंदौली जिले के नौ ब्लाक में. इनके नाम, संगठन, काम, के चर्चे अधिकारियों से लेकर जनता तक हैं. प्रत्येक ब्लाक से इनके साथ जुझारू कार्यकर्ता जुड़े हैं जिनमे से : मुन्ना भैया, सतीश, जीतेन्द्र, संतोष, कमलेश, श्रवण, राम अवध, दीपक, हौसला, धीरज, लालबहादुर, अरबिंद कुमार, मनोज, बंदेमातरम, रमेश चन्द्र आदि हैं.

Wednesday, December 2, 2009

Saturday, November 21, 2009

आल्हा :हिरोशिमा दिवस- ६ अगस्त (एटम बम की शिकार बालिका सडाको की दास्तान)



यह आल्हा, ६ अगस्त १९४५ को जापान देश के हिरोशिमा शहर पर अमेरिका द्वारा किये गए परमाणु बम के हमले में लाखों लोगों की जान जाने और वहां बचे लोगों को खून का कैंसर होने, की याद दिलाता है ताकि जापान की एक बालिका की तरह लोग खून के कैंसर का शिकार न हों और परमाणु बम, मिसाइल, बारूद जैसी चीजें जो मानव,पर्यावरण,पशु-पक्षी,जीव-जंतु सभी के लिए प्राण घातक हैं, लोग इनका विरोध करें

प्रथम सडाको की बंदना, दूजे प्रकृति प्रणाम
तीजे शांति संदेश को, आजु रहियो शीश झुकाय
भूल चूक जो हमसे होवै, भैया गलती लिह्यो छिपाय
छोटे मुंह से बड़ी-बड़ी बातें,अब तो हमसे कहीं न जाय
सुनो हकीकत बमबारी कै, सी.एल. आल्हा रहे सुनाय
समझ में आवै जो संदेशो, एक चिड़िया तुम देहेऊ बनाय
हियाँ की बातें हियन्हि छाड़ऊ, अब आगे कै सुनौ हवाल
जापान देश में शहर हिरोशिमा, लीन्हो जनम सडाको जाय
पिता ससाकी बहनी मित्सुई, भैया मासा हीरो इजी
खिली पंखुडी, बिटिया सडाको, घर में रही उजियाली छाय
सुनो कहानी सर्वनाश की, हाथ से बैठो दिल को थाम
६ अगस्त, सन् ४५ को, भैया दिल में लेऊ समाय
सवा आठ थे बजे सुबह के, जनता रही थी ख़ुशी मनाय
काह पता था ओ मोरे भैया, जलबे आजु अग्नि में जाय
घर-घर किलके मुन्नी-मुन्ना, मैया प्यार से रहीं खिलाय
अत्याचारी बनो अमरीका, दिल में तनिको रहम न खाय
सांप सूंघी जाय ऐसे देश को, बादल फटे हुवन पर जाय
बम पटकि हिरोशिमा पर दीन्हो, मन रह्यो है ख़ुशी मनाय
विमान एनोला लिटिल बॉय बम, जाको नाम रहेन बतलाय
उडे चीथड़े प्यारी जनता के, पशु-पक्षी थे रहे चिल्लाय
धरती कांपी बादल हिलगए, लालरी आसमान में छाय
कोई तड़पे, कोई भागे, मरने वालों का नहीं सुमार
नदिया का पानी ऐसे उबले, कडाही उबले कड़ुवा तेल
लाश देखि कै धरती रोवै, केहिका-केहिका लेई छुपाय
मांस, चीथड़े, पंक्षी न खावें, लाशों का नहीं कोई सुमार
हाहाकार मचो दुनिया में, टी।बी. चैनल रहे बताय
थर-थर कांपे पत्रकार जी, डॉक्टर भागि घरन को जायं
सारे शहर के अस्पताल मा, लाशों के लगि गए अंबार
सुई-दवाई और डॉक्टर, सबके उडी गए होश हवाश
ऊँची-ऊँची बिल्डिंग गिर गयी, धरती को खायीं दीन बनाय
नगर हिरोशिमा मरघट बनि गयो, जामें लाशों केर निवास
केहिकी लाशें कहना बहिगयीं, जाको नहीं है कोई हिसाब
तेहिमा बचि गयो घर बिटिया का, जेहिकी गाथा रहेन सुनाय
दुई बरस की बिटिया सडाको, जो बमबारी के भई शिकार
खेल कूद में सबसे अव्वल, जहिसे कोई न पाए पार
पैग-पैग पर बिटिया सडाको, अपनी कीरति रहीं बढाय
काह पता था माय-बाप को, बिटिया गयीं है काल समाय
समय बीति गयो खेल कूद में, लिखे पढ़े में गम बिसराय
ग्यारह बरस की बिटिया सडाको, खेल कूद में भई होशियार
चाह रही थी मन बिटिया के, दौड़ में बाजी लेबे मारि
दौड़ शुरू भई कालेज मईहाँ , बिटिया पंख दीन फैलाय
लगा टक-टकी जनता देखे, बिटिया बाजी लीन्ही मारि
चक्कर खाई के बिटिया गिर गयी, लागी चोट माथ में जाय
देख के जनता ऐसे तड़पे, पानी बाहर मछली आय
अस्पताल पहुंची बिटिया सडाको, डॉक्टर आला दीन लगाय
खून का कैंसर इसको भैया, डॉक्टर बानी दीन सुनाय
एटम बम के शीशे भैया, बिटिया को कैंसर दीन बनाय
कोई दवा नहीं भैया इसकी, डॉक्टर जोड़ी हाथ को दीन
जबतक जीवै बिटिया भैया, तब तक खुशियाँ लेउ मनाय
ख़ुशी रखो तुम इसको भैया, यही है बिटिया केर इलाज
एक सहेली बिटिया केरी, जहिका नाम चुजूको होय
हजार साल तक पंक्षी जीवै, बहिनी चिडिया लेउ बनाय
सुनिकै बानी प्यारी चुजूको की, बिटिया फूली नहीं समाय
मदद के खातिर जनता जुट गयी, कागज के लगि गए अम्बार
देखि के चिड़िया रंग बिरंगी, बीमारी तुरतै दी बिसराय
ख़ुशी छाय गयी सारे शहर मा, मची लोगों में हाहाकार
धीरे-धीरे बिटिया सडाको, जीवन अपना रहीं बढाय
छः सौ बीस, छः सौ एकतीस, बिटिया गिनती रहीं लगाय
छः सौ चवालीस की आई बारी, बिटिया रोंकि हाथ को दीन
सिर चकरायो, चक्कर आयो, आँखिन रह्यो अंधेरो छाय
२५ अक्टूबर सन् पचपन को, बिटिया गई हैं स्वर्ग सिधार
छोड़ी के दुनिया बिटिया चल दीं, सूना कर गयीं देश दुवार
फूल गुलाब सी बिटिया मरि गई, दिल में मच गई हाहाकार
फटो कलेजो माय-बाप का, बिटिया निकल हाथ से जाय
पकड़ी कलेजा मैया रोवै, बापौ गिरो धरनी पर जाय
सुनिके जनता छाती कूटे, नैनन रही है नीर बहाय
साथी सलाही सारे मिलिकै, बाकी चिडिया लीन बनाय
दीन समाय धरती में भैया, एक हजार पंक्षिन के साथ
पूरी कामना भी सडाको की, दिल में रही शांति छाय
बनो स्मारक है बिटिया को, सन् १९५८ में जाय
दे गई सन्देश जो हमको भैया, सुन लीजै तुम ध्यान लगाय
यही हमारे आंसू भैया, प्रार्थना करब यही हम जाय
शांति सन्देश दुनिया को दे गयी, जहिका आजु रहेन मनाय
भूलि न जाना सन्देश मोरे भैया, दुनिया देश में करो प्रचार
शत-शत नमन करूँ उस बिटिया को, जिसने दीन्हो प्राण गंवाय

रचयिता :"चुन्नीलाल"
(लेखक: झोपड़ पट्टी में निवास करने वाले गरीबों की स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास और उनके बुनियादी अधिकारों के लिए संघर्ष व उनके बच्चों की शिक्षा के लिए काम करते हैं । आशा परिवार एवं जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता हैं तथा भारत नव निर्माण के सहयोगी, सलाहकार वा अतिथि लेखक हैं )