Saturday, November 21, 2009

आल्हा :हिरोशिमा दिवस- ६ अगस्त (एटम बम की शिकार बालिका सडाको की दास्तान)



यह आल्हा, ६ अगस्त १९४५ को जापान देश के हिरोशिमा शहर पर अमेरिका द्वारा किये गए परमाणु बम के हमले में लाखों लोगों की जान जाने और वहां बचे लोगों को खून का कैंसर होने, की याद दिलाता है ताकि जापान की एक बालिका की तरह लोग खून के कैंसर का शिकार न हों और परमाणु बम, मिसाइल, बारूद जैसी चीजें जो मानव,पर्यावरण,पशु-पक्षी,जीव-जंतु सभी के लिए प्राण घातक हैं, लोग इनका विरोध करें

प्रथम सडाको की बंदना, दूजे प्रकृति प्रणाम
तीजे शांति संदेश को, आजु रहियो शीश झुकाय
भूल चूक जो हमसे होवै, भैया गलती लिह्यो छिपाय
छोटे मुंह से बड़ी-बड़ी बातें,अब तो हमसे कहीं न जाय
सुनो हकीकत बमबारी कै, सी.एल. आल्हा रहे सुनाय
समझ में आवै जो संदेशो, एक चिड़िया तुम देहेऊ बनाय
हियाँ की बातें हियन्हि छाड़ऊ, अब आगे कै सुनौ हवाल
जापान देश में शहर हिरोशिमा, लीन्हो जनम सडाको जाय
पिता ससाकी बहनी मित्सुई, भैया मासा हीरो इजी
खिली पंखुडी, बिटिया सडाको, घर में रही उजियाली छाय
सुनो कहानी सर्वनाश की, हाथ से बैठो दिल को थाम
६ अगस्त, सन् ४५ को, भैया दिल में लेऊ समाय
सवा आठ थे बजे सुबह के, जनता रही थी ख़ुशी मनाय
काह पता था ओ मोरे भैया, जलबे आजु अग्नि में जाय
घर-घर किलके मुन्नी-मुन्ना, मैया प्यार से रहीं खिलाय
अत्याचारी बनो अमरीका, दिल में तनिको रहम न खाय
सांप सूंघी जाय ऐसे देश को, बादल फटे हुवन पर जाय
बम पटकि हिरोशिमा पर दीन्हो, मन रह्यो है ख़ुशी मनाय
विमान एनोला लिटिल बॉय बम, जाको नाम रहेन बतलाय
उडे चीथड़े प्यारी जनता के, पशु-पक्षी थे रहे चिल्लाय
धरती कांपी बादल हिलगए, लालरी आसमान में छाय
कोई तड़पे, कोई भागे, मरने वालों का नहीं सुमार
नदिया का पानी ऐसे उबले, कडाही उबले कड़ुवा तेल
लाश देखि कै धरती रोवै, केहिका-केहिका लेई छुपाय
मांस, चीथड़े, पंक्षी न खावें, लाशों का नहीं कोई सुमार
हाहाकार मचो दुनिया में, टी।बी. चैनल रहे बताय
थर-थर कांपे पत्रकार जी, डॉक्टर भागि घरन को जायं
सारे शहर के अस्पताल मा, लाशों के लगि गए अंबार
सुई-दवाई और डॉक्टर, सबके उडी गए होश हवाश
ऊँची-ऊँची बिल्डिंग गिर गयी, धरती को खायीं दीन बनाय
नगर हिरोशिमा मरघट बनि गयो, जामें लाशों केर निवास
केहिकी लाशें कहना बहिगयीं, जाको नहीं है कोई हिसाब
तेहिमा बचि गयो घर बिटिया का, जेहिकी गाथा रहेन सुनाय
दुई बरस की बिटिया सडाको, जो बमबारी के भई शिकार
खेल कूद में सबसे अव्वल, जहिसे कोई न पाए पार
पैग-पैग पर बिटिया सडाको, अपनी कीरति रहीं बढाय
काह पता था माय-बाप को, बिटिया गयीं है काल समाय
समय बीति गयो खेल कूद में, लिखे पढ़े में गम बिसराय
ग्यारह बरस की बिटिया सडाको, खेल कूद में भई होशियार
चाह रही थी मन बिटिया के, दौड़ में बाजी लेबे मारि
दौड़ शुरू भई कालेज मईहाँ , बिटिया पंख दीन फैलाय
लगा टक-टकी जनता देखे, बिटिया बाजी लीन्ही मारि
चक्कर खाई के बिटिया गिर गयी, लागी चोट माथ में जाय
देख के जनता ऐसे तड़पे, पानी बाहर मछली आय
अस्पताल पहुंची बिटिया सडाको, डॉक्टर आला दीन लगाय
खून का कैंसर इसको भैया, डॉक्टर बानी दीन सुनाय
एटम बम के शीशे भैया, बिटिया को कैंसर दीन बनाय
कोई दवा नहीं भैया इसकी, डॉक्टर जोड़ी हाथ को दीन
जबतक जीवै बिटिया भैया, तब तक खुशियाँ लेउ मनाय
ख़ुशी रखो तुम इसको भैया, यही है बिटिया केर इलाज
एक सहेली बिटिया केरी, जहिका नाम चुजूको होय
हजार साल तक पंक्षी जीवै, बहिनी चिडिया लेउ बनाय
सुनिकै बानी प्यारी चुजूको की, बिटिया फूली नहीं समाय
मदद के खातिर जनता जुट गयी, कागज के लगि गए अम्बार
देखि के चिड़िया रंग बिरंगी, बीमारी तुरतै दी बिसराय
ख़ुशी छाय गयी सारे शहर मा, मची लोगों में हाहाकार
धीरे-धीरे बिटिया सडाको, जीवन अपना रहीं बढाय
छः सौ बीस, छः सौ एकतीस, बिटिया गिनती रहीं लगाय
छः सौ चवालीस की आई बारी, बिटिया रोंकि हाथ को दीन
सिर चकरायो, चक्कर आयो, आँखिन रह्यो अंधेरो छाय
२५ अक्टूबर सन् पचपन को, बिटिया गई हैं स्वर्ग सिधार
छोड़ी के दुनिया बिटिया चल दीं, सूना कर गयीं देश दुवार
फूल गुलाब सी बिटिया मरि गई, दिल में मच गई हाहाकार
फटो कलेजो माय-बाप का, बिटिया निकल हाथ से जाय
पकड़ी कलेजा मैया रोवै, बापौ गिरो धरनी पर जाय
सुनिके जनता छाती कूटे, नैनन रही है नीर बहाय
साथी सलाही सारे मिलिकै, बाकी चिडिया लीन बनाय
दीन समाय धरती में भैया, एक हजार पंक्षिन के साथ
पूरी कामना भी सडाको की, दिल में रही शांति छाय
बनो स्मारक है बिटिया को, सन् १९५८ में जाय
दे गई सन्देश जो हमको भैया, सुन लीजै तुम ध्यान लगाय
यही हमारे आंसू भैया, प्रार्थना करब यही हम जाय
शांति सन्देश दुनिया को दे गयी, जहिका आजु रहेन मनाय
भूलि न जाना सन्देश मोरे भैया, दुनिया देश में करो प्रचार
शत-शत नमन करूँ उस बिटिया को, जिसने दीन्हो प्राण गंवाय

रचयिता :"चुन्नीलाल"
(लेखक: झोपड़ पट्टी में निवास करने वाले गरीबों की स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास और उनके बुनियादी अधिकारों के लिए संघर्ष व उनके बच्चों की शिक्षा के लिए काम करते हैं । आशा परिवार एवं जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता हैं तथा भारत नव निर्माण के सहयोगी, सलाहकार वा अतिथि लेखक हैं )

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