14 years ago
Tuesday, December 15, 2009
ऐ मेरे प्यारे वतन
*Geet Ganga के सौजन्य से साभार
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Audio Songs,
Aye mere pyare watan,
ऐ मेरे प्यारे वतन
Monday, December 7, 2009
चन्दन है इस देस की माटी
*Geet Ganga के सौजन्य से साभार
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Audio Songs,
chandan hai is des kee matee
प्रेरक गीत
1)एक एक पग बढ़ते जायें
2)भारत को स्वर्ग बना दो
3)साधना का पथ कठिन है
4)रास्ट्र भक्ति ले ह्रदय में
*Geet Ganga के सौजन्य से साभार
2)भारत को स्वर्ग बना दो
3)साधना का पथ कठिन है
4)रास्ट्र भक्ति ले ह्रदय में
*Geet Ganga के सौजन्य से साभार
Saturday, December 5, 2009
गरीबों से लेकर पत्थर तक दे रहे आशा परिवार का परिचय
गरीबों से लेकर पत्थर तक दे रहे आशा परिवार का परिचय
लेखक: चुन्नीलाल
ऐसी लगन, ऐसा जुडाव वह भी बिना किसी लालच के. क्या जरुरत थी कि अपना समय इसमें नष्ट करते. इससे न तो उन्हें मजदूरी मिलती न ही कोई भत्ता. अपनी लड़ाई को तो वो खुद लड़ेगें तभी उन्हें अपना हक़ मिलेगा. पर शायद हम लोगों की समझ से परे और गरीबों के दिलों की आवाज से काफी पास है. वो लोग जिन्हें चाहे जहाँ चाहें बिठा सकते हैं. लेकिन आज तक मैंने यह सुना था कि किसी भी संगठन या पार्टी के कार्यकर्ता बनना है तो उसके लिए मेम्बरशिप चार्ज देना पड़ता है वह भी मनुष्यों के लिए. पर यहाँ तो इसका उल्टा है पता ही नहीं चलता है कि इसका मुखिया कौन है. इसमें कौन और कैसे लोग इसके कार्यकर्ता बन सकते हैं. आदमी ही नहीं वह भी पत्थर भी इसके गवाह हैं. सबके सब मालिक हैं और सब कार्यकर्ता. वह भी बिना किसी चार्ज के बल्कि खुद अपने अधिकारों की लड़ाई लड़कर. वह संगठन है आशा परिवार।
बात उन दिनों की है जब मैं कुछ व्यक्तिगत काम के लिए जिला चंदौली गया था. अख़बारों, टी।वी. चैनलों, अधिकारियों और तमाम चर्चाओं से सुन रखा था कि चंदौली जिले का कुछ भाग नक्सल प्रभावित है. जहाँ पर जाना खतरे से ख़ाली नहीं है. इस जिले में ९ ब्लाक हैं. जिसमें नौगढ ब्लाक खासतौर से चर्चा का विषय बना है. नक्सालियों का भय मेरे मन में भी बना था। अधिकारी लोग भी इसकी चर्चा खूब करते थे। लोगों से कुछ ऐसा सुन रखा था। जिससे मेरी रुंह काँप जाती। पर मुझे क्या? मुझे तो वहां जाना नहीं है। मैं तो लखनऊ में रहूँगा। कुछ काम है तो उसे निपटा लूँगा। यही सोंचते-२ मेरा एक महीना बीत गया. जिले की लगभग ब्लाक में गया पर नौगढ़ और चकिया ब्लाक में नहीं गया. सोंच भी रखा था कि मुझे वहां नहीं जाना है. मैंने सुन रखा था कि चंदौली जिले में आशा परिवार के वरिष्ठ, कर्मठ, संघर्षशील, ईमानदार कार्यकर्ता श्री जयशंकर पाण्डेय जी काम करते हैं. उन्होंने सामाजिक चेतना को ऐसा जगाया है कि लोगों का एक बड़ा जत्था इनके साथ संघर्ष करने को हमेशा तैयार रहता है. पहले तो मुझे विश्वास नहीं हुआ. खैर एक दिन ऐसा आ ही गया कि इनसे मुलाकात हो गई. पता लगा था कि डी.एम. ने एक मीटिंग विशेश्वरपुर ब्लाक-नौगढ़ में रखी है. जहाँ सुप्रीम कोर्ट के आयुक्तों की सलाहकार श्रीमती अरुंधती धुरु जी भी आ रही है। मुझे उनसे मिलने का मौका मिला. मैं काफी खुश था.
दिनांक १६ नवम्बर २००९ को मै गाड़ी में सवार होकर नौगढ़ ब्लाक के उसी एरिया से गुजरा जिसका बड़ा खौफ था और देखने की इच्छा . जहाँ का नाम सुन रखा था. बड़े-२ पहाड़ों, काफी दूर तक फैले जंगल का नजर देखकर दिल काँप गया. तमाम विचार मेरे दिमाग में आने लगे . खैर ४-५ लोग गाड़ी में बैठे थे जिससे इतना डर नहीं लगा कि ह्रदय घात हो जाए. मन में बहुत से प्रश्न लिए और गाड़ी से ही बाहर का माहौल, डरावना जंगल देखते हुए जा रहा था कि अचानक मेरी आँखों के सामने पत्थरों पर लिखा जैसा कुछ चमका. मैंने अपनी निगाह ऊँचे-२ पहाड़ों को चीरती हुयी सडक, के किनारे ऊंचाई पर पड़े पत्थरों पर डाली. मुझे अचानक झटका लगा कि क्या ऐसा हो सकता है. ये कैसे हुआ. यह नाम किसने लिखा. यह नाम किसका है. गावं पहुंचते ही लोगों से मिला तो पता चला कि यहाँ के लोगों ने इन पत्थरों को भी आशा परिवार का कार्यकर्ता बनाया है. वह भी किसी के कहने से नहीं बल्कि आशा परिवार संगठन द्वारा गरीबों का साथ देने से, गरीबों ने ऐसा किया. क्योंकि इन लोगों की जिंदगी इन्ही पत्थरों के बीच गुजरती है.
पर हाँ, यह सच है कि वहां के ऊँचें-२ पहाड़ों के पत्थर भी आशा परिवार का नाम अपने ऊपर लिखवाकर यही सबूत दे रहे है कि मुझे भी मौका मिला आशा परिवार का कार्यकर्ता बनने का. इन सबका श्रेय जाता है मग्सय-सेसे पुरुस्कार से सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. संदीप पाण्डेय जी के साथ काम करने वाले श्री जयशंकर पाण्डेय जी को. जिनका मुख्य काम गरीब, आदिवासी, दलित, और समाज से वंचित लोगों को उनका हक़ दिलाना व उनके अधिकारों के प्रति उन्हें जागरूक करना. मंरेगा मजदूरी से लेकर सार्वजनिक वितरण प्रणाली, मध्यान्ह भोजन, शिक्षा का अधिकार, स्वास्थ्य का अधिकार, सूचना का अधिकार, भोजन का अधिकार, काम का अधिकार, तक का हक़ लोगों को दिलाना है. आज गरीब से गरीब व्यक्ति अपने ग्राम पंचायत प्रधान, सेक्रेटरी, बी.डी.ओ., कोटेदार, अध्यापक, डी.एम. को भले ही नहीं जानता हो, पर जयशंकर पाण्डेय और आशा परिवार को जरुर जानता है. जिनसे उन्हें जीने के स्वाभिमान पूर्वक जीने का अधिकार मिला. इन्होनें गरीबों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक ही नहीं किया बल्कि उनका हक़ दिलाया. चाहे वह नरेगा के तहत हड़प की गयी मजदूरों की मजदूरी हो, या फिर कोटेदारों द्वारा हड़प किया गया गरीबों का राशन हो, प्रधानों द्वारा ग्राम विकास के हड़प किये गए पैसे की जनता जाँच हो. वह भी पूरे चंदौली जिले के नौ ब्लाक में. इनके नाम, संगठन, काम, के चर्चे अधिकारियों से लेकर जनता तक हैं. प्रत्येक ब्लाक से इनके साथ जुझारू कार्यकर्ता जुड़े हैं जिनमे से : मुन्ना भैया, सतीश, जीतेन्द्र, संतोष, कमलेश, श्रवण, राम अवध, दीपक, हौसला, धीरज, लालबहादुर, अरबिंद कुमार, मनोज, बंदेमातरम, रमेश चन्द्र आदि हैं.
Wednesday, December 2, 2009
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