लेखक: चुन्नीलाल
लखनऊ 26 दिसम्बर 2009 दिन शुक्रवर को ग्राम मुर्दापुर, पोस्ट-शाहपुरभभरौली, थाना-काकोरी, जिला- लखनऊ में यह नजारा देखने को मिला, जहाँ पर भाइयों ने अपने ही भाई को मुखाग्नि देने से इंकार कर दिया. फिर मजबूरन पत्नी को अपनी नवजात पुत्र को अपनी गोद में लेकर मुखाग्नि देना पड़ा. यह वाकया थाना काकोरी के ग्राम मुर्दापुर, जिला लखनऊ का है जहाँ पर बेचालाल अपनी पत्नी श्रीमती पच्चो और एक बेटे उम्र 3 वर्ष थी रहा करते थे. बीते 25 दिसम्बर 2009 की रात में बेचालाल का देहांत हो गया. वह काफी दिनों से कैंसर पीड़ित थे. अपनी जमीन बेचकर किसी प्रकार से अपना इलाज कर रहे थे. उनके फेफड़ों में मवाद बन गया था जिसे ठीक कराना उनके बस के बाहर था. किसी प्रकार से दवाई चलती रही और वह दो महीने जिन्दा रहे. इसी दौरान जब उन्हें पैसे की कमी महसूस दी तो उन्होंने अपनी जमीन बेंच दी. जमीन इलाज के लिए बेंची थी लेकिन भाइयों ने उनसे कहा की आप ने जमीन ज्यादा की बेंची है. अगर हमें उसमें से कुछ हिस्सा दें तो मैं आप की देखभाल करूँगा अन्यथा नहीं. यह बात बेचालाल और उनकी पत्नी पच्चो को नागवार गुजरी. उन्होंने हिस्सा देने से मना कर दिया और कहा कि इलाज के लिए जमीन बेचीं है. इसमें से पहले मैं अपना इलाज करा लूगा. उसके बाद जो बचेगा उसे देखा जायेगा. इसी दौरान बेचालाल ने कुछ पैसे लगाकर अपना घर पक्का बना लिया. यह बात भाइयों को नागवार गुजरी और उन्होंने कहा कि जब आप मरेंगे तो मैं तुम्हे मुखाग्नि तक नहीं दूंगा. ठीक वैसा ही हुआ कि जब उनकी मृत्यु 25 दिसम्बर की रात हुयी और अंतिम संस्कार 26 दिसम्बर 2009 को होने के लिए हुआ तो भाइयों ने मना कर दिया।
बल्कि सभी रिश्तेदारों ने भी उनके भाइयों को समझाया. फिर भी वह नहीं डिगे. अंत में गावंवालों के कहने पर पत्नी पच्चो ने अपने 3 वर्षीय बच्चे को लेकर अपने पति को मुखाग्नि दी. यह दर्द नाक घटना देख कर मैं दंग रह गया कि पैसे के खातिर भी खून के रिश्ते बदल सकते हैं।